रविवार, 26 अगस्त 2012

संघ की जुबान बोलनी बंद करे मीडिया




गौर से देखो इन देखो इन दोनों झण्डों को क्या फर्क है इनमें ? इनमें एक पाकिस्तान का राष्ट्र ध्वज है तो दूसरा इस्लामी झंडा है जिसे पूरी दुनिया में जहां पर भी मुसलमान है वहां इसे फहराया जाता है । क्योंकि यह एक धार्मिक ध्वज  है जिसका किसी भी राष्ट्र ध्वज से कोई सरोकार नहीं है । इस संसार में जितने भी धर्म हैं उनका अपना धार्मिक झंडा है । जैसे सनातन धर्म का झंडा भगवा रंग का है जैन धर्म का पीले और काली पट्टी उसके बीच में है । उसी प्रकार यह इस्लामी झंडा जिसका रंग हरा ( खुशहाली ) है तथा बीच में सफेद कलर ( शांती का प्रतीक ) है । लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब यह ध्वज यूरोप में फहराया जाता है तो यह इस्लामी होता है , मगर जब इसी ध्वज को आजाद मैदान मुंबई , कश्मीर , असम , केरल , लखनऊ , मेरठ , दिल्ली में इसे फहराया जाता है तो इस इस्लामी ध्वज को हमारा मीडिया पाकिस्तानी पाकिस्तानी ध्वज लिखता है टीवी रेडियो इंटरनेट यानी संचार के सभी माध्यम इसे पाकिस्तानी ध्वज कहते हैं टेलीविजन पर चैनलों को एक और मसाला मिल जाता है साथ में कुछ फिरकापरस्त ताकतों को बोलने का कत्लो गारत करने का बहाना मिल जाता है । देश के दुशमन हर जगह प्रोपेगेंडा फैलाने में कामयाब हो जाता हैं और मीडिया उनकी पूरी मदद करता है ।
और बेचारा मुस्लिम समाज जगह जगह सफाई देता फिरता है कि मगर उसकी कोई सुनवाई नहीं होती । फिरकापरस्त भूल जाते हैं कि यह झंडा तब भी था जब हमारा राष्ट्र ध्वज तिरंगा नहीं था, यह तब भी था जब पाकिस्तान नाम की कोई चीज इस संसार के नक्शे पर नहीं थी । तो फिर आज यह पाकिस्तानी झंडा कैसे हो गया ? सीधा सा जवाब है RSS और भाजपा व शिवसेना जैसे संगठनों ने इसे पाकिस्तान का झंडा कहना शुरु कर दिया और मीडिया ने उसका भरपूर साथ दिया उसी मीडिया ने जिसके बारे में क्लास रूम में व्याख्याता गला फाड़ फाड़ कर कहते हैं कि समाचार लिखने में निष्पक्षता होनी चाहिये दोनों पक्षों को सुनना चाहिये । मैं पूछना चाहता हूँ अपने देश के मीडिया से क्या उसने एक बार भी पाकिस्तान से मालूम किया कि यह इस्लामी झंडा है या पाकिस्तानी ? तो अब क्या यह मान लिया जाये कि मीडिया भी अब RSS व फिरकापरस्तों की बपौती बनकर रह गया है ? या यह भारत के मुसलमानों के खिलाफ शीत युद्ध है ? कुछ एसा ही काम पुलिस भी करती थी किसी भी मुस्लिम युवक एनकांटर किया और उसकी जेब से एक उर्दू में लिखा खत निकलता था एक नक्शा निकलता और वह पुलिस के पास बहाना था कि यह फलां बम विस्फोट का दोषी था .... यहां पर मुनव्वर राना का एक शेर याद आरहा है कि ....
जिसे भी जुर्मे गद्दारी में तुम सब कत्ल करते हो
उसी की जेब से क्यों मुल्क का नक्शा निकलता है ?
लेकिन उस शहीद हेमेंत करकरे को सलाम जिसने मुस्लिम समाज पर लगे आतंकवाद के धब्बों को अपने खून से धोया उसने साबित कर दिया कि असली दुश्मन कौन है ? अब पुलिस ने तो यह घिनोने कार्य बंद कर दिये मगर मीडिया अब भी दुष्प्रचार करने में कोई कमी नहीं छोड़ता । इससे लगता है कि मीडिया या तो संघ परिवार शिव सेना भाजपा की बपौती है या वह फिरकापरस्ती के जाल में फंस चुकी है ।

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