चलो अब ईद मनायें
पहले की तरह
कैसे संयोग की बात है कि अभी चार दिन पहले पूरे
देश ने जश्न ए आज़ादी मनाया है और अब ईद आगई है ईद का चाँद नजर आते ही बाजारों में
खरीदारी के लिये अक़ीदतमंदों की भीड़ लग गई । त्योहार पर बाजार में खरीदारी होना
स्वभाविक है । कोई कपड़े खरीद रहा है तो कोई खिलोने कोई सिवईंया क्योंकि ईद पर एक
चलन बन गया है नये कपड़े पहनने का । हम लोगों ने त्योहार को भी अब फैशन शो बनाकर
रख दिया है । एक सवाल यहां पर मेरे मन में उठ रहा है कि क्या ईद केवल नये कपड़े
पहनने , इत्र लगाने से ही मनायी जाती है ? नहीं ईद का मतलब है
खुशियां बांटना बच्चों में बुजुर्गों में मिस्कीनों में इन सब में खुशियां बांटना
उन्हें खुशियों का एहसास दिलाना । जिसकी आज पूरे देश को जरूरत है सारा देश इस वक्त
धार्मिक व जातीय उन्माद के शोलों से झुलसा हुआ है कहीं असम जल रहा है तो कहीं पर
अभी दंगों के जख्म ताजा हैं । अभी बरेली व , कुण्डा दंगों की इस आग से बाहर निकले
हैं जानी व माली दोनों तरह का नुकसान उठाया है । मगर असम के कई जिलों में अब भी
हिंसा जारी है । मतलब कि नफरत फैलाने वाले अपने मकसद में कामयाब होते नजर आ रहे
हैं कभी आजाद मैदान के बहाने तो कभी बंगलूर में खौफ फैलाने में कामयाब हो गये । कल
लखनऊ , कानपुर , इलाहबाद , में कुछ असमाजिक तत्वों ने एसा घिनोना काम किया है
जिसकी सारे देश में निंदा हो रही है , बस इसी की जरूरत है जो अमन के दुश्मन हैं
उनके हौसले अपने आप पस्त हो जायेंगे , इस बार यह ईद पहली ईद से कुछ जुदा है । इस ईद पर अपने आसपास
के उन बुर्जुगो का भी हमे ध्यान रखना होगा जिन का इस दुनिया में और कोई नही है। उन
गरीब बच्चो को भी नही भूलना होगा जो यतीम है। उन बेवाओ के घर जकात और फितरा हमे
पूरी जिम्मेदारी के से पहुचाना होगा जो घरो में इज्ज्त से गुजर बसर कर रही है। तभी
ईद की खुशियो में हम शरीक होने का हमे हक है।
इस बार हमें ईद ईद की तरह मनाना है केवल
नये वस्त्र धारण करके नहीं बल्कि हमें मनाना है इसे उनके लिये जिनके परिवार दंगों
में मारे गये हैं जो रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं जिन्होंने अपनों को दोस्तों को रिश्तेदारों
को खोया है जिनकी आँखें आज खुशियों की तलाश में दरवाजों पर जा टिकी हैं मगर खुशी
उन्हें दूर तक दिखाई नहीं दे रही है । हमें उन परिवारों को ईद के बहाने खुशियों
में शामिल करना है यह ठीक है मौजूदा हालात पहले से खराब हैं , मगर इतने भी नहीं कि
उन्हें सुधारा ना जा सके यही तो एक अवसर है फिरकापरस्त ताकतों को, दंगाईयों, बलवाईयों
को जवाब देने का हमें इसे गंवाना नहीं बल्कि इसका प्रयोग उन ताकतों के खिलाफ करना
है जिन्होंने पूरे देश की फिजा में जहर घोल रखा है । बुरा वक्त सब पर आता है हमें
उससे डरना नहीं चाहिये बल्कि उसका मुकाबला हिम्मत के साथ करना चाहिये ।याद करो
इतिहास बताता है वो भी तो ईद थी जब हमारी आजादी के दीवाने हमारी आजादी के लिये लड़
रहे थे , जब हमने चीन से जंग की थी , जब हमने पाकिस्तान को धूल चटाई थी । तब वह
लड़ाई हमारे दुश्मनों से थी लेकिन इस बार की लड़ाई हमारे अपने उन भाईयों से है जो
भूले से गलत राहों पर चले गये हैं जिनका लौट कर आना बहुत जरूरी है । फिर वही
जुम्मन मियाँ होंगे वही ठाकुर साहब जो क साथ मिलकर ईद मनायेंगे सिवईयां खायेंगे एकता
का कौमी यकजहती का पैगाम सारे देश को देंगे और ईद फिर ईद की तरह मनायी जायेगा शहर
की आग को गाँव तक नहीं आने दिया जायेगा और उस आग को बुझाने की हर हाल में कोशिश की
जा रही है खुदा कामयाबी जरूर देगा । तो चलो फिर तैयार हो जाओ ईद मनाने के लिये ,
खुशियां मनाने के लिये । यह कहकर आपको ईद की दिली मुबारकबाद आप ...........
एसी हर साल खुशी आये मयस्सर सबको
मेरी हर सांस कहे ईद मुबारक सबको ।
आपका वसीम अकरम