दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे.
ऐ जुल्म के मारो, लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसेउट्ठेगा, कुछ दूरतो नाले जायेंगे.
ऐ खाकनशीनो, उठ बैठो, यह वक्त करीब आ पहुंचा है
... जब तख्त गिराये जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे.
अब टूट गिरेंगीं जंजीरें, जब जिन्दानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टालेजायेंगे.
कटते भी चलो, बढते भी चलो, बाजू भी बहुत हैंसर भी बहुत
चलते ही चलो, कि अब डेरे मंजिल पेही डाले जायेंगे.
- फैज अहमद फैज-
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे.
ऐ जुल्म के मारो, लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसेउट्ठेगा, कुछ दूरतो नाले जायेंगे.
ऐ खाकनशीनो, उठ बैठो, यह वक्त करीब आ पहुंचा है
... जब तख्त गिराये जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे.
अब टूट गिरेंगीं जंजीरें, जब जिन्दानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टालेजायेंगे.
कटते भी चलो, बढते भी चलो, बाजू भी बहुत हैंसर भी बहुत
चलते ही चलो, कि अब डेरे मंजिल पेही डाले जायेंगे.
- फैज अहमद फैज-